आप कृषि से जुड़े हो या न हो, पर कृषि आपके जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई है.
अगर कृषि न हो तो आपकी थाली में खाना नहीं होगा. आपकी थाली तक खाना पहुंचाने वाले कुछ किसान आज सड़कों पर उतर कर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं. किसानों का ये गुस्सा नए कृषि बिल को लेकर है.
आइए जानते हैं, क्या है ये कृषि बिल और इसमें गुस्सा करने वाली कौन सी बात है?
इस पर भी बात करेंगे कि ये कृषि बिल क्या सचमुच में किसानों को परेशान करेगा या फिर किसान कृषि बिल से खामखा परेशान हैं?
कृषि का आधारभूत ढांचा
सारा माजरा जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि देश में खेती का मौजूदा सिस्टम कैसे काम करता है. किसान अपनी पकी हुई फसल जैसे कि गेहूं, धान, मक्की, दाल या कपास जैसी फसलों को लेकर अनाज मंडी पहुंचता है जहां सरकार उससे फसल को खरीदती है. यह अनाज मंडी लगभग हर जिले में होती है और कोई भी किसान यहां पर आसानी से अपनी फसल बेच सकता है. यहां पर फसल की खरीद का एक तय सिस्टम और हर फसल का न्यूनतम भाव होता है. इसे एम.एस.पी (MSP) कहते हैं.
एम.एस.पी (MSP)
न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) सरकार द्वारा प्रत्येक फसल के लिए एक न्यूनतम कीमत तय की जाती है. किसी भी फसल के लिए एम.एस.पी से कम कीमत नहीं दी जा सकती. तो इसका मतलब हुआ की सरकार किसान को हर फसल की एक गारंटी कीमत देती है जो किसी भी किसान को अनाज मंडी में मिल सकती है. यह कीमतें सरकार द्वारा किसान की फसल पर हुए विभिन्न खर्चों को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है. इसका मुख्य मकसद किसानों को नुक्सान होने से बचाना है.
क्या है नया कृषि बिल?
भारत सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा हाल ही में कृषि से संबंधित तीन बिल प्रस्तुत किए गए जिनको लोकसभा, राज्यसभा तथा राष्ट्रपति से स्वीकृत्ती के बाद कानून बना दिया गया है. ये कानून पूरे देश भर में लागू होंगे क्योंकि ये केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए हैं.
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 और कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020. दोनो ही कृषि के विकास और किसानों की आय बढ़ाने का रास्ता आसान करने की बात करते हैं.
इससें कहा गया है कि किसान मंडियों में ही नहीं बल्कि मंडी के बाहर कहीं भी निजी व्यापारियों को अपना अनाज बेच सकते हैं. ये कानून लागू होने से किसान पूरे भारत में कहीं भी अपनी फसल बेच सकता है, जहां भी उसे बेहतर कीमत मिले.
किसानों की आशंका
बिल के संसद में पेश होते ही देशभर में आंदोलनों व विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ सी आ गई है. पंजाब व हरियाणा में तो किसान ही नहीं बल्कि बच्चे, बूढ़े, नौजवान, महिलाएं व कलाकार वर्ग भी सड़कों पर उतर कर किसानों के लिए आवाज उठा रहे हैं. सभी के सभी केन्द्र सरकार के विरोध में नारे लगा रहे हैं व बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. इस कड़ी में शिरोमणी अकाली दल जो कि भारतीय जनता पार्टी का बेहद पुराना गठबंधन है, ने भी अपना समर्थन वापस ले लिया है.
किसानों का मानना है कि इन बिल के आने से धीरे-धीरे मंडियां बंद हो जाएंगी और निजी कंपनियां उनकी जगह ले लेंगी. ऐसे में निजी कंपनियां अपने मनमर्जी के दाम देकर किसानों का शोषण करेंगी.
किसानों का विरोध प्रदर्शन
यह आर्टिकल लिखे जाने तक पंजाब व हरियाणा सहित कई जगहों पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है. पंजाब में किसान समीतियां, पंजाबी म्यूज़िक इंडस्ट्री के लोग व विभिन्न राजनीतिक दल इस प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं. कांग्रेस व अकाली दल अपने अपने स्तर पर किसानों के हित में एक दूसरे के खिलाफ ही धरने कर रहे हैं. राहुल गांधी सहित बड़े नेता भी रैली निकाल कर किसानों के हित की बात कर रहे हैं.
कब तक चलेगा प्रदर्शन
यह कहना बहुत मुश्किल है कि किसानों के ये धरने कब तक चलेंगे. सरकार इस कानून को वापस लेने पर विचार बिल्कुल भी नहीं कर रही. सरकार का कहना है कि कुछ राजनीतिक दल किसानों को बरगलाने का काम कर रहे हैं. असल में ये कृषि कानून किसानों के पक्ष में ही हैं.
किसानों की मांग क्या है?
किसानों की प्रमुख मांग यही है कि इस कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दी जाए. सरकार उनकी फसल खरीदना जारी रखे ताकि उन्हें निजी कंपनियों पर निर्भर न रहना पड़े. किसानों को किसी अनुबंध में न फसना पड़े और पहले की तरह की खरीद प्रक्रिया जारी रहे.
इस समस्या का हल अभी फिलहाल होता नजर नहीं आ रहा. यदि किसानों के प्रतिनिधि के साथ सरकार समझौता कर ले तो शायद किसान शांत हो सकते हैं. देखना यह होगा कि क्या सीएए और एनआरसी विरोध प्रदर्शन की तरह यह भी यूँ ही खतम हो जाएगा या फिर किसान सत्ता को झुकने पर मजबूर कर देंगे??
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