शिमला में सीट बेल्ट का विवाद फिर से चर्चा में आ गया है. इस बार शिमला पुलिस द्वारा जारी की गई फेसबुक पोस्ट से मामला शुरु हुआ है.
चर्चा आज नहीं लगभग डेढ़ साल पहले यानी फरवरी 2018 में शुरु हुई थी. शिमला पुलिस ने अचानक एक नोटिफिकेशन जारी की जिसमें चार पहिया वाहनों को चलाते समय सीट बेल्ट पहनना अनिवार्य कर दिया. शिमला के लोग पहले से ही दो हेलमेट की समस्या को लेकर परेशान चल रहे थे, लेकिन सरकार की ओर से ये एक और झटका उन्हें मिला. हालाँकि ये कोई समस्या या परेशानी नहीं है बल्कि एक मैंडेटरी सेफ्टी है.
अब फिर से मुद्दा शुरु हो गया
अब फिर से इसकी चर्चा गरमा रही है, क्योंकि शिमला पुलिस के आधिकारिक फेसबुक पेज से एक सूचना जारी की गई है. इस में लोगों से सीट बेल्ट पहन कर गाड़ी चलाने का आग्रह किया गया है तथा इसके लिए एक विशेष अभियान का भी आयोजन किया जा रहा है. 23 जुलाई से इस नियम के उल्लंघन पर नियमानुसार कार्यवाही अमल में लाई जाएगी, जिसका तात्पर्य है- चालान कटेगा. इसी अभियान को Aggressive तरीके से दिखाने के लिए शिमला पुलिस के फेसबुक पेज का प्रोफाइल पिक्चर भी बदला गया है.
https://www.facebook.com/ShimlaPolice/posts/2214116412032720?
(फेसबुक पर शिमला पुलिस द्वारा जारी की गई सूचना)
स्थानीय संगठनों द्वारा विरोध
पुलिस के सूचना जारी करते ही स्थानीय लोग व कुछ संगठन एकदम से सचेत हो गए हैं. सर्व कर्मचारी पेंशनर बेरोजगार संघ के प्रदेशाध्यक्ष गोपाल दास वर्मा कहते हैं कि “शिमला जैसे पहाड़ी क्षेत्र में पुलिस के इस आदेश को लागू करना वाहन चालकों के लिए गले की फांस के समान है. शहर की ढलान और घुमावदार वाली सड़कों में सीट बेल्ट पहनना बहुत घातक हो सकता है.”
ऐसा कहने वाले वे अकेले नहीं बल्कि लोकल लोग भी यही मानते हैं कि शिमला जैसे पहाड़ी क्षेत्र में जहां एक निश्चित स्पीड लिमिट के बाद गाड़ी चलाना संभव नहीं है, ऐसी जगह पर सीट बेल्ट को अनिवार्य करना फिजूल है. लोगों के अनुसार ये चालान बटोरने का पुलिस का एक नया तरीका हो सकता है.
सरकारी आदेश
पुलिस द्वारा समय-समय पर सीट बेल्ट को लेकर अभियान शुरू किया गया. लोगों को जागरूक किया गया व चालान भी किए गए. लेकिन आज भी शिमला की लोकल गाड़ी में सीट बेल्ट पहन कर गाड़ी चलाने वालों की सँख्या ना के बराबर हैं. पुलिस ने कभी भी लोगों को इस बात का तर्क नहीं बताया कि पहाड़ों में सीट बेल्ट पहन कर गाड़ी चलाने के क्या फायदे हो सकते हैं.
ऐसी स्थिति में लोगों द्वारा दिया जा रहा तर्क जो कि दुर्घटना की स्थिति में चालक के बचने की बात करता है, वही सही दिखता है. शिमला पुलिस स्थानीय जनता को सीट बेल्ट के प्रयोग को लेकर संतुष्ट कर पाने में फेल रही है. यदि पुलिस के पास वाकई में इसके प्रयोग को लेकर कोई ठोस तर्क है तो उसे सार्वजनिक तौर पर सामने लाना चाहिए. क्योंकि पिछले कई दशकों से शिमला के लोग बिना सीट बेल्ट के गाड़ी चलाते आए हैं, और ऐसा भी नहीं है कि सीट बेल्ट की खोज अभी ताज़ा ही हुई हो. जनता का सवाल है कि आज तक इसका ख्याल पुलिस को क्यों नहीं आया और अब इसे क्यों एकदम से थोपा जा रहा है?
समाधान के रास्ते
बार-बार पुलिस का सूचना जारी करना और लोगों का विरोध करना, ये सिलसिला काफी पुराना हो चला है. इसमें नुक्सान के अलावा और कुछ नहीं हो सकता. पुलिस को चाहिए कि लोगों को सीट बेल्ट का महत्व समझा कर उन्हें संतुष्ट किया जाए, न कि जबरन चालान कर के लोगों का गुस्सा बढ़ाया जाए. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब तक लोग सीट बेल्ट के लिए सीरीयस नहीं होंगे तब तक पुलिस अपने अभियान में कामयाब नहीं हो सकती.
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