इस बात में कोई शक नहीं है कि भारत एक डैमोक्रेसी है और यहां पर चुनाव होते आए हैं और होते भी रहेंगे। लेकिन पिछले कुछ दिनों में लोकसभा चुनावों के दौरान हो रही घटनाओं ने सबको परेशान किया है।
अगर आप अपने देश की जरा भी फिक्र करते हैं तो ये आपके लिए नॉर्मल नहीं हो सकता।
हमें लगता है कि इलेक्शन का हमारी सीधी जिंदगी से कोई लेना देना नहीं होता। होता भी यही है, कोई फर्क नहीं पड़ता। मोदी जीते या फिर कोई और, किसी मे हमें कुछ देना तो है नहीं। लेकिन असल बात है कि ये सोच और ये ट्रैंड बिल्कुल गलत है। अगर नरेन्द्र मोदी को या किसी और को हमारा वोट चाहिए तो हमें भी तो उसके बदले में कुछ मिलना ही चाहिए।
आपने शायद वोट किया हो या नहीं, लेकिन यकीन मानिए ये वोट बहुत कीमती होता है। अगर आप चाहें तो अपना वोट बेच सकते हैं, और कीमत मनमानी मिल सकती है। होता भी है ऐसा, दरअसल 100, 50 से लेकर 500 और 5000 से ऊपर तक की कीमत लगती है एक-एक वोट की। कई जगह सिर्फ एक बोतल से बात बन सकती है।
पर इतना सस्ता बिका हुआ ये वोट किसी को भी बहुत आगे पहुंचा सकता है। प्रधानमंत्री की कुर्सी तक भी। सोचिए आप किसी आदमी को देश के खजाने की चाबी दे रहे हैं, सिर्फ उससे 500 रूपये लेकर। अब वो 5 साल तक आपके साथ जो मर्जी चाहे कर सकता है। जो मर्जी। चाहे तो नोट बंद कर सकता है, चाहे तो टैक्स का सारा सिस्टम हिला कर रख सकता है।
अब चाहे ये फैसले सही हो या गलत, आप कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि आपने उसे एक वोट दिया था, या शायद वोट दिया ही नहीं था। शायद आप घर जाने में कम्फरटेबल नहीं थे उस दिन।
हर चुनावों में वोटिंग परसेन्टेज बढ़ने के बजाए घटती है, औऱ पोप्यूलेशन दनादन बढ़ती है।
अगर हमने वोट नहीं दिया तो कोई भी अनपढ़ हमारे लिए फैसले लेगा। हमें उस अनपढ़ आदमी से आस लगानी पड़ेगी कि वो हमें नौकरी दिलाएगा।
वो कभी नोट बंदी करेगा, या शायद आपकी जिंदगी जीने पर भी टैक्स लगाएगा।
फिर अपने एक वोट को याद कीजिएगा।
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वैसे भी फ्यूचर में शायद आपको वोट करने का मौका ही न मिले…………क्योंकि जब टाइम था..तब आपने वोट दिया नहीं।
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