आलोचकों के कारण ही “कबीर सिंह” इस साल की सबसे बड़ी फिल्म बन चुकी है. फिल्म की निंदा करने से केवल इसके निर्माताओं का फायदा हुआ है.
21 जून 2019 को एक हिन्दी फिल्म रिलीज़ हुई, नाम- ‘कबीर सिंह’. कोई नई स्टोरी नहीं है बल्कि एक तेलुगू फिल्म ‘अर्जुन रैड्डी’ का रीमेक है. तमिल में भी इसी कहानी पर ‘आदित्या वर्मा’ नाम की फिल्म बन चुकी है. कबीर सिंह इस कहानी पर बनी तीसरी फिल्म है. बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म भले ही सारे रिकार्ड ध्वस्त कर रही हो लेकिन लोगों में इस फिल्म को लेकर अलग अलग धारणाएं हैं। इसी मिक्सड ऑपिनियन के चलते भी इस फिल्म को काफी कामयाबी मिली है.
2019 लोकसभा चुनावों के बाद यदि किसी विषय पर सबसे ज्यादा फालतू चर्चा हुई है, तो वो कबीर सिंह ही है. सोशल मीडिया पर तथाकथित फेमिनिस्ट अथवा वुमेन राईट एक्टिविस्ट कूद पड़े हैं कि किस तरह फिल्म में कमियां निकाली जाए. ऐसा इसलिए है क्योंकि फिल्म एक पुरुष पर आधारित कहानी है जिसमें एक महिला के किरदार को नीचा दिखाया गया है. खैर, ये देखने वाले के दृष्टिकोण पर आधारित है, क्योंकि मेरी नज़र में इस फिल्म में एक सशक्त महिला को दिखाया गया है, जो अपने दम पर जीने का साहस रखती है.
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कुछ लोगों का कहना है कि फिल्म के निर्देशक महिलाओं की इज्जत नहीं करते. वहीं दूसरी तरफ फिल्म डायरेक्टर संदीप रैड्डी ने फिल्म की आलोचना करने वालों को “कभी सच्चा प्यार न करने वाले” बताया है. मेरे हिसाब से ये दोनो ही तर्क बेतुके हैं. न ही कहानी में कोई आलोचना करने वाली बात है और ना ही इस फिल्म का सच्चे प्यार से कोई लेना देना है. ये फिल्म मात्र एक असाधारण पुरुष के असाधारण जीवन काल को परिभाषित करती है.
सोशल मीडिया पर फिल्म की आलोचना करने वाले मूर्ख हैं
मेरा मानना है कि सोशल मीडिया पर आलोचना करना हम सब के लिए बेहद आसान है. इसके लिए एक स्मार्टफोन व इंटरनेट के अलावा कुछ भी नहीं लगता. बस आप किसी भी तरह कुछ भी बक सकते है. फिल्म तो मात्र मनोरंजन हेतु बनाई गई है, लेकिन इस देश में हजारों ऐसी प्रीति हैं जो इस से भी बद्दतर बदसलूकी का शिकार हो रही हैं. कबीर आखिर में प्रीति से मिल गया लेकिन हजारों प्रीति ऐसी हैं जो कबीर से परेशान होकर आत्महत्या कर लेती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शादी से पहले किसी गैर लड़के से 450 बार सेक्स करने के बाद यदि वो बदसलूकी करे तो आपके पास आत्महत्या से बेहतर विकल्प नहीं रहता. चंद ही प्रीतियां हैं, जो इसका सामना कर पाती हैं और खुद को संभाल पाती है.
फेमिनिस्ट समाज को यदि वाकई में प्रीति की फिक्र है तो समाज में बैठी असली प्रीतियों की मदद करे. उन्हें पहचाने, क्योंकि वो सबके सामने नहीं आ पाती. कुछ की तो शादी हो चुकी है और एक घटिया कबीर को बर्दाश्त करना अब उनकी ताउम्र मजबूरी बन चुका है. ऐसी लड़कियों को वास्तव में मदद की जरूरत है, एक सोशल मीडिया हैशटेग से उनकी मदद नहीं हो पाएगी.
कबीर सिंह फिल्म के खिलाफ छेड़े गए इस अभियान से सिर्फ फिल्म की कमाई में इजाफा हुआ है. बाकि कुछ लोगों को ट्विटर पर लोकप्रियता मिली है. फिल्म को पसंद अथवा नापसंद करना आपकी स्वतंत्र इच्छा है लेकिन अगर आपको लगता है कि इस फिल्म की बुराई कर के आप महिलाओं के हितैषी (Supporter) बन चुके हैं तो आप दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख हैं.
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