चंडीगढ़ में वैसे तो खास घूमने-फिरने के लिए कुछ बचा नहीं तो पिछले इतवार सोचा कि क्यों न चंडीगढ़ के नाम के पीछे के रहस्य वाली जगह पर चला जाए। चंडी मंदिर, जिसके नाम पर ही शहर का नाम पड़ा वहीं चल पड़ते हैं। चंडीगढ़ से मात्र 15 किलोमीटर दूर चंडी मंदिर टोल प्लाज़ा पार करते ही चंडी मंदिर पहुंच जाते हैं।
तो चलिए चंडी मंदिर के बारे में विस्तार से जानते है:
चंडी मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार चंडी मंदिर अलौकिक स्थान है, इसी कारण यह लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। एक कथा के अनुसार यहीं पर मां चंडी ने राक्षस महिषासुर को परास्त किया था, जिससे यह पवित्र भूमि पीढ़ियों तक पूजा का स्थान बनी रही। यह भी माना जाता है कि महाकाव्य महाभारत के पांडव अर्जुन ने अपने 12 साल के वनवास के दौरान इसी स्थान पर मां चंडी की तपस्या की थी और माँ का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
चंडी मंदिर तक कैसे पहुंचें?
चंडी मंदिर चंडीगढ़ छावनी क्षेत्र के पास स्थित है और कहा जाता है कि यह इस क्षेत्र का सबसे पहला गांव है। चंडी मंदिर रेलवे स्टेशन नजदीक होने से मंदिर तक पहुंचना सुविधाजनक है। यदि चंडीगढ़ या जीरकपुर की ओर से खुदकी गाड़ी से आ रहे हैं, तो चंडी मंदिर टोल प्लाजा पर नज़र रखें। टोल गेट पार करने के बाद, लगभग 200 मीटर तक आगे बढ़ने पर आपको बाईं ओर मंदिर का द्वार मिलेगा।
Google पर नहीं सड़क पर ध्यान ज्यादा रखिएगा क्योंकि यदि गेट से आगे निकल गए तो काफी दूर से मुड़ कर वापस आना पड़ सकता है। चंडीगढ़ से चंडी मंदिर के लिए बस सुविधा भी है।
चंडीगढ़ के नज़दीक एक शांत स्थान
जब हम मंदिर पहुंचे तो हमें एक शांत माहौल मिला और इसी बीच मनमोहक संध्या आरती भी शुरु हो गई। मंदिर परिसर में पर्याप्त पार्किंग स्थान उपलब्ध था और इस विशेष रविवार की शाम को लगभग 40-50 भक्तजन उपस्थित थे। हम आरती में शामिल हुए, लयबद्ध आरती और मंत्रोच्चार की मधुर ध्वनि से हम मधुर धुनों में डूब गए। आरती व संध्या का यह कर्म लगभग 30 मिनट तक चला जिसके लिए हम 30 मिनट खड़े रहे।
चंडी मंदिर की बनावट और कारीगरी
चंडी मंदिर उत्कृष्ट शिल्प कौशल और कलात्मकता का जीता जागता प्रमाण है। मंदिर की वास्तुकला में सुनहरे रंग से सुसज्जित जटिल लकड़ी का काम है, जो बहुत लुभावना है। जैसे ही हम मंदिर के अंदर गए हम दिव्य कलाकृतियों और अलंकृत सजावट को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।
यह मंदिर हरे-भरे वातावरण के बीच स्थित है, जो शहरी जीवन की हलचल से हटकर एक शांत माहौल प्रदान करता है। जंगल क्षेत्र से इसकी निकटता एक अनोखा आकर्षण जोड़ती है, जो इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य की भावना पैदा करती है। चंडीगढ़ शहर के साथ साथ चंडी मंदिर रेलवे स्टेशन का नाम भी इसी मंदिर के नाम पर पड़ा है जो इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व पर और जोर देता है।
चंडी मंदिर आने वाले भक्तों के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव:
- गूगल मेप नेविगेशन: केवल नेविगेशन ऐप्स पर निर्भर रहने से बचें, क्योंकि वे आपको गलत स्थान पर ले जा सकते हैं। इसके बजाय, चंडी मंदिर टोल प्लाजा पार करने के बाद बाईं ओर के मंदिर पर नज़र रखें।
- समय: शाम की प्रार्थना के आध्यात्मिक अनुभव के लिए संध्या आरती के समय अपनी यात्रा की योजना बनाएं।
- पार्किंग: मंदिर में पर्याप्त पार्किंग स्थान है। हालाँकि, वीकैंड और छुट्टी वाले दिनों में अधिक भीड़ देखी जा सकती है, इसलिए इन दिनों में जल्दी पहुंचना सही रहेगा।
- पोशाक और शिष्टाचार: मंदिर की पवित्रता के सम्मान में जाते समय शालीन और सम्मानजनक पोशाक पहनें। परिसर के भीतर शांतिपूर्ण और शांतिपूर्ण आचरण बनाए रखें।
- फोटोग्राफी: अपनी यात्रा के खूबसूरत पलों को कैद करें, लेकिन मंदिर की पवित्रता और साथी भक्तों की गोपनीयता का ध्यान रखें। फ्लैश फोटोग्राफी का उपयोग करने से बचें और मंदिर अधिकारियों द्वारा दिए गए किसी भी दिशानिर्देश का पालन करें। मंदिर के अंदर फोटोग्राफी मना है।
चंडी मंदिर की हमारी यात्रा एक आत्मा-विभोर करने वाला अनुभव साबित हुई, जिसने हमें इस प्राचीन मंदिर के समृद्ध इतिहास का अनुभव कराया। चंडीगढ़ का नाम चंडीगढ़ कैसे पड़ा इस बात को जानने की जो तलब थी वो आज चंडी मंदिर जाकर पूरी हो गई।
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